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नज़्म
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
घंटी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजा कर सब क़व्वाली गाते थे
गुलज़ार
नज़्म
होंट टूटे हुए, लटकी हुई मिट्टी की ज़बानें हर-सू
भूक उस वक़्त भी थी, प्यास भी थी, पेट भी था
गुलज़ार
नज़्म
आज-कल भूले हुए हैं सब इलेक्शन और डिबेट
प्रैक्टीकल की कापियों के आज-कल भरते हैं पेट