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नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आइंदा की फ़र्ज़ी इशरत के वादों से न कर बेताब हमें
कहता है ज़माना जिस को ख़ुशी आती है नज़र कमयाब हमें
अख़्तर शीरानी
नज़्म
गो आग से छाती जलती थी गो आँख से दरिया बहता था
हर एक से दुख नहीं कहता था चुप रहता था ग़म सहता था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तिरे ज़ेर-ए-नगीं घर हो महल हो क़स्र हो कुछ हो
मैं ये कहता हूँ तू अर्ज़-ओ-समा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे राज़-ए-दो-आलम दिल का आईना दिखाता है
वही कहता हूँ जो कुछ सामने आँखों के आता है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कभी जब सोचता हूँ अपने बारे में तो कहता हूँ
कि तू इक आबला है जिस को आख़िर फूट जाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वो मेरी आँखों पर झुक कर कहती है ''मैं हूँ''
उस का साँस मिरे होंटों को छू कर कहता है ''मैं हूँ''
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तुम समझती हो कि हैं पर्दे बहुत से दरमियाँ
मैं ये कहता हूँ कि हर पर्दा उठा सकता हूँ मैं