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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
खेल-खिलौनों का हर-सू है इक रंगीं गुलज़ार खिला
वो इक बालक जिस को घर से इक दिरहम भी नहीं मिला
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये फिर कौन से मा'रके का इरादा
तुम्हारी नसों में ये किस ख़्वाब-ए-फ़ातेह का फिर बाब-ए-वहशत खुला है
रफ़ीक़ संदेलवी
नज़्म
अभी तअ'ल्लुक़ के सर्द बिस्तर को बर्फ़ की सिल नहीं बनाओ
अगर अदावत बदन को तापे तो हर्ज क्या है