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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
ख़ुद बचन दे के 'जरा' सिंध से रन में भागे
रहे बद-गोई-ए-शिशुपाल पे ख़ामोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में निहाँ रखते हैं
मिस्ल-ए-ख़ूँ जोश ये रग रग में रवाँ रखते हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
रनपूर के मंदिर में हम को मस्जिद के सुतूँ मिल जाते हैं
वहदत की इसी चिंगारी से दिल मोम हुआ है पत्थर का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मौत ने रात के पर्दे में किया कैसा वार
रौशनी-ए-सुब्ह वतन की है कि मातम का ग़ुबार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
न गुलचीं हो न सय्याद-ए-सितम-राँ की सितम-रानी
न गुल की चाक-दामानी न ग़ुंचों की परेशानी