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नज़्म
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयाम-ए-ज़िंदगी लाया
ख़बर देती थीं जिन को बिजलियाँ वो बे-ख़बर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उस के तो मुँह का रंग उड़ाती है मुफ़्लिसी
जब ख़ूब-रू पे आन के पड़ता है दिन सियाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
न हाथ थाम के मुझ को कभी घसीट सकी
वो माँ जो गुफ़्तुगू की रौ में सुन के मेरी बड़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
न ख़ातूनों में रह जाएगी पर्दे की ये पाबंदी
न घूँघट इस तरह से हाजिब-ए-रू-ए-सनम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
रू-ए-ज़मीन पर दरिया से ज़्यादा मोहब्बत करने वाला कोई नहीं
दरिया अपने समुंदर की तरफ़ बहता रहता है