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नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शहपर-ए-बुलबुल पे खींची जाए तस्वीर-ए-शिग़ाल!
मोतियों पर सब्त हो तूफ़ान की मोहर-ए-जलाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
की बीनाई का मसरफ़ था... वो लब दो चार दिन पहले
मिरे माथे पे हो कर सब्त जो कहते थे'' तुम जाओ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दश्त-ओ-दमन में कोह कमर में बिखरे हुए हैं फूल ही फूल
रु-ए-निगार-ए-गीती पर हैं सब्त मिरे बोसों के निशाँ