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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम अपने कमरे में गहरी तन्हाइयों में गुम थे
घड़ी की टिक-टिक जो सुई को टेकते गुज़रती
अंबरीन हसीब अंबर
नज़्म
उम्मीद की इक नन्ही सी किरन मायूसी पर छा जाती है
और उस की ज़ौ में एक नई दुनिया बाज़ू फैलाती है