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नज़्म
ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूँ
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सो मैं ने साहत-ए-दीरोज़ में डाला है अब डेरा
मिरे दीरोज़ में ज़हर-ए-हलाहल तेग़-ए-क़ातिल है
जौन एलिया
नज़्म
वो हिकमत नाज़ था जिस पर ख़िरद-मंदान-ए-मग़रिब को
हवस के पंजा-ए-ख़ूनीं में तेग़-ए-कार-ज़ारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दरख़्तों की घनी छाँव में जा कर लेट जाता है
हवा के तेज़ झोंके जब दरख़्तों को हिलाते हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
जिन के सर मुंतज़िर-ए-तेग़-ए-जफ़ा हैं उन को
दस्त-ए-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
है तवाफ़-ओ-हज का हंगामा अगर बाक़ी तो क्या
कुंद हो कर रह गई मोमिन की तेग़-ए-बे-नियाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे