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नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी की ओज-गाहों से उतर आते हैं हम
सोहबत-ए-मादर में तिफ़्ल-ए-सादा रह जाते हैं हम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तिफ़्ल-ए-बाराँ ताजदार-ए-ख़ाक अमीर-ए-बोस्ताँ
माहिर-ए-आईन-ए-क़ुदरत नाज़िम-ए-बज़्म-ए-जहाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तेरी पेशानी पे झलकेगा मिसाल-ए-बर्क़-ए-तूर
तिफ़्ल का नाज़-ए-शराफ़त और शौहर का ग़ुरूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
पत्तियाँ फूलों की गिरती हैं ख़िज़ाँ में इस तरह
दस्त-ए-तिफ़्ल-ए-ख़ुफ़्ता से रंगीं खिलौने जिस तरह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
मर्द ओ ज़न तिफ़्ल ओ जवाँ ख़ुर्द ओ कलाँ पीर ओ फ़क़ीर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कर रहा है क़स्र-आज़ादी की बुनियाद उस्तुवार
फ़ितरत-ए-तिफ़्ल-ओ-ज़न-ओ-पीर-ओ-जवाँ का इंक़लाब
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
इस कारवाँ में तिफ़्ल भी हैं नौजवाँ भी हैं
बूढ़े भी हैं मरीज़ भी हैं ना-तवाँ भी हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आसमाँ की गोद में दम तोड़ता है तिफ़्ल-ए-अब्र
जम रहा है अब्र के होंटों पे ख़ूँ-आलूद कफ़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ميں نے چاقو تجھ سے چھينا ہے تو چلاتا ہے تو
مہرباں ہوں ميں ، مجھے نا مہرباں سمجھا ہے تو
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कि इक चालीस-साला तिफ़्ल की रोज़ा-कुशाई है
फ़रिश्ते इस पे हैराँ दम-ब-ख़ुद सारी ख़ुदाई है