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नज़्म
हमें मा'लूम है कि अगले वक़्तों में ये लोग
तिरे पैरों के साँचों से नई सम्तों के अंदाज़े लगाएँगे
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
अगले दिन हाथ हिलाते हैं पिछली पीतें याद आती हैं
गुम-गश्ता ख़ुशियाँ आँखों में आँसू बन कर लहराती हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब
हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार