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नज़्म
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरे बस में थी अगर मशअ'ल-ए-जज़्बात की लौ
तेरे रुख़्सार में गुलज़ार न भड़का होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
पारा पारा अब्र सुर्ख़ी सुर्ख़ियों में कुछ धुआँ
भूली-भटकी सी ज़मीं खोया हुआ सा आसमाँ