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नज़्म
मगर क्या कीजिए जब फ़ैसला ये है मशिय्यत का
कि मैं फ़ितरत की आँखों से गिरूँ अश्क-ए-रवाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ग़ैरत-ए-बाग़-ए-इरम हैं खेतियाँ हर गाँव में
ख़ुल्द का आराम है पेड़ों की ठंडी छाँव में
अर्श मलसियानी
नज़्म
था ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-देहली ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार
रश्क-ए-सद-गुलज़ार था एक एक ख़ार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
कोई बताए अज़्मत-ए-ख़ाक-ए-वतन कहाँ है अब
कोई बताए ग़ैरत-ए-अहल-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुझी से ग़ैरत-ए-कश्मीर है दयार-ए-वतन
तुझी से रश्क-ए-इरम गुलिस्तान-ए-मुस्तक़बिल