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नज़्म
ये बात अजीब सुनाते हो वो दुनिया से बे-आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
वो जान कि जिस से जी ग़श हो सौ नाज़ से आ झनकारी हो
दिल देख 'नज़ीर' उस की छब को हर आन अदा पर वारी हो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
धूप पड़ी, तो खुल गई आँखें, खुल गया सारा भेद
ग़श खाया, तो दौड़े आए मुंशी, पंडित, वेद
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
फिर उट्ठी एशिया के दिल से चिंगारी मोहब्बत की
ज़मीं जौलाँ-गह-ए-अतलस क़बायान-ए-तातारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब चलते चलते रस्ते में ये गौन तिरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ इस कार-गह-ए-ज़र्दारी में
दो भोली-भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है