aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHaak-e-kuucha-e-jaanaa.n"
अब सबा कूचा-ए-जानाँ में गुज़रे है कि नहींतुझ को इस फ़ित्ना-ए-आलम की ख़बर है कि नहीं
जब तिरे शहर-ओ-कूचा-ओ-दर सेज़िंदगी सरगिराँ रही तू ने
आ मिरी जान आ एक से दो भलेआज फेरे करें कूचा-ए-यार के
अजीब कूचा-ए-रश्क-ए-जिनाँ था देहली काबहिश्त कहते हैं जिस को मकाँ था देहली का
मैं कड़ी हूँ गए ज़मानों कीशहर-ए-माज़ी के ख़ाक दानों की
मैं अभी लौट कर नहीं आईदिल ने बरसों से रू-ए-आलम की ख़ाक छानी है
फेसबुक कूचा-ए-जानाँ से है मिलती-जुलतीहर हसीना यहाँ मिल जाएगी हिलती-जुलती
ऐसे बोलता हैकि जैसे कूचा-ए-ख़ाक-ए-वजूद के अंदर
कूचा-ए-जानाँ के लगाते चक्करबा'द मरने के भी जी में है तवाफ़
ज़िंदगी कूचा-ए-जानाँ का सफ़र लगती थीअपनी मंज़िल कहीं जन्नत के उधर लगती थी
इक अर्सा हुआ कूचा-ए-जानाँ हुआ वीरानफिर भी तुम इसी शहर की निगरानी करो हो
न किसी हाथ में पत्थर न किसी हाथ में फूलकर गए कूच कहाँ कूचा-ए-जानाँ वाले
हर ग़ज़ल कूचा-ए-जानाँ से ज़ियादा प्यारीहर नज़र शे'र है तस्वीर-ए-बुतान-ए-उर्दू
मेरे लहू की बूँद में ग़लताँ थीं बिजलियाँख़ाक-ए-दकन को मैं ने शरर-आश्ना किया
याद होगा तुझे रात की बात हैकोई दीवाना आवारा-ए-कूचा-ए-दिलबराँ
पैवंद-ए-रह-ए-कूचा-ए-ज़र चश्म-ए-ग़ज़ालाँपाबोस-ए-हवस अफ़सर-ए-शमशाद-क़दाँ है
'इश्क़ अब पैरवी-ए-'अक़्ल-ए-ख़ुदा-दाद करेआबरू कूचा-ए-जानाँ में न बर्बाद करे
और रात को वो ख़ल्वती-ए-काकुल-ओ-रुख़सारबज़्म-ए-तरब-ओ-कूचा-ए-ख़ूबाँ में मिलेगा
है मशहूर-ए-कूचा-ओ-बर्ज़नबॉल में नाचें लेडी-कर्ज़न
सगान-ए-कूचा-ए-शोहरत के ग़ौग़ाकाले बाज़ारों के दल्लालों से डरते हैं
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