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नज़्म
है मुसल्लम अबदी ख़ालिक़-ए-अकबर का वजूद
रोज़-ए-रौशन में हो जैसे शह-ए-ख़ावर का वजूद
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
तुम्हें इस इंक़िलाब-ए-दहर का क्या ग़म है ऐ 'अकबर'
बहुत नज़दीक हैं वो दिन कि तुम होगे न हम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-अकबर फ़ना में है बक़ा मुज़्मर
उसे जीना नहीं आता जिसे मरना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हर नज़र में तिरे महबूब का जल्वा हो निहाँ
ख़ालिक़-ए-कौन-ओ-मकाँ ऐसी बसीरत दे दे
सईद अहमद सईद कड़वी
नज़्म
वो बाब-उल-इल्म हो या मस्जिद-ए-सिद्दीक़-ए-अकबर हो
हुसैनाबाद हो या वो मिरी फ़ारूक़ नगरी हो
इशरत आफ़रीं
नज़्म
मुस्कुरा कर ख़ालिक़-ए-अर्ज़-ओ-समा ने दी निदा
ऐ ग़ज़ाल-ए-मशरिक़ी आ तख़्त के नज़दीक आ