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नज़्म
वो हसीं वो नूर-ज़ादे वो ख़ला के शाहज़ादे
जो हमारी क़िस्मतों पर रहे हुक्मराँ हमेशा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुझे समझ में आ गया है ये जहाँ
ख़ला मकाँ ज़माँ के चंद तार से बना हुआ सितार है