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नज़्म
हुस्न से वहशत इश्क़ से नफ़रत अपनी ही सूरत से प्यार
ख़ंदा-ए-गुल पर एक तबस्सुम गिर्या-ए-शबनम से इंकार
हबीब जालिब
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अब कहाँ वो कुंज-ए-दिल-कश अब कहाँ राधा का ऐश
है ब-रंग-ए-ख़ंदा-ए-गुल बे-बक़ा दुनिया का ऐश
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
और मरहम भी नापैद था
लेकिन उस रोज़ देखा जो इक तिफ़्ल-ए-नौ-ज़ाईदा का ख़ंदा-ए-ज़ेर-ए-लब
शकेब जलाली
नज़्म
कहीं चंगेज़ के होंटों पे मौज-ए-ख़ंदा-ए-रंगीं
कहीं मज़लूम की आँखों में नम ऐसा न होना था
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
ऐ गुल-ए-नाज़ुक-अदा, ऐ ख़ंदा-ए-सुब्ह-ए-चमन
चूमती है तेरे होंटों को नसीम-ए-मुश्क-ए-तन