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नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मुतमइन है तू परेशाँ मिस्ल-ए-बू रहता हूँ मैं
ज़ख़्मी-ए-शमशीर-ए-ज़ौक़-ए-जुस्तुजू रहता हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अज़्मत-ए-आदम से कर के मुंज़बित अपना सुख़न
ग़म-ज़दों को जुरअत-ए-ज़ौक़-ए-सफ़र देता है वो
हबीब जौनपुरी
नज़्म
कार-फ़रमा फिर मिरा ज़ौक़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी है आज
फिर नफ़स का साज़-ए-गर्म-ए-शो'ला-अफ़्शानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
'ग़ालिब'-ओ-'शेफ़्ता'-ओ-'नय्यर'-ओ-'आज़ुर्दा'-ओ-'ज़ौक़'
अब दिखाएगा ये शक्लें न ज़माना हरगिज़