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नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नज़्म
हम ने ख़ुद शाही को पहनाया है जमहूरी लिबास
जब ज़रा आदम हुआ है ख़ुद-शनास-ओ-ख़ुद-निगर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरी तमाम ज़िंदगी मा'रका-हाए-ख़ैर-ओ-शर
मेरी निगाह-ए-अर्श पर मैं कफ़-ए-ख़ाक-ए-ओ-ख़ुद-निगर
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
बहुत माज़ूर हैं ये ख़ुद-निगर अपनी जिबिल्लत से
मुक़द्दर इन का है शाम ओ सहर को रोज़ सर करना
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
सुना है तुम ने अपने आख़िरी लम्हों में समझा था
कि तुम मेरी हिफ़ाज़त में हो मेरे बाज़ुओं में हो
जौन एलिया
नज़्म
इम्तिहाँ सर पर है लड़के लड़कियाँ हैं और किताब
डेट-शीट आई तो गोया आ गया यौम-उल-हिसाब