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नज़्म
फ़ज़ा में घुल से गए हैं उफ़ुक़ के नर्म ख़ुतूत
ज़मीं हसीन है ख़्वाबों की सरज़मीं की तरह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इसी हिंडोले में 'विद्यापति' का कंठ खुला
इसी ज़मीन के थे लाल 'मीर' ओ 'ग़ालिब' भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जोहद-ए-हस्ती की कड़ी धूप में थक जाने पर
जिस की आग़ोश ने बख़्शा है मुझे माँ का ख़ुलूस
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
तिरे दामन से हम ने क़ीमती लम्हात पाए हैं
ख़ुलूस-अाे-उनसियत के बे-बहा जज़्बात पाए हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
गाए हैं मैं ने ख़ुलूस-ए-दिल से भी उल्फ़त के गीत
अब रिया-कारी से भी चाहूँ तो गा सकता नहीं