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नज़्म
ख़ुशा वो दौर-ए-बे-ख़ुदी कि जुस्तुजू-ए-यार थी
जो दर्द में सुरूर था तो बे-कली क़रार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
हमारे दामन-ए-अफ़्कार पर तेरा ही साया है
ख़ुशा स्कूल कि हम ने तुझी से फ़ैज़ पाया है
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
ख़ुशा कि आज ब-फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा वो दिन आया
कि दस्त-ए-ग़ैब ने इस घर की दर-कुशाई की
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये वो जमुना है कि गाती हैं सुख़नवर जिस के गीत
मुत्रिबान-ए-ख़ुश-गुलू की हैं ज़बाँ पर जिस के गीत
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
खुली है मुझ को लेने के लिए आग़ोश-ए-आज़ादी
ख़ुशा कि हो गया महबूब का दीदार फाँसी से
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
मिरे कमाल की ज़ामिन है ख़ुद ये क़िस्मत-ए-ग़म
ख़ुशा मैं खस्ता-ए-ग़म तो हूँ सोगवार नहीं
मीम हसन लतीफ़ी
नज़्म
दिलों की बे-क़रारी का यही ले कर क़रार आई
ख़ुशा-क़िस्मत चमन में अंदलीब-ए-नग़्मा-बार आई