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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
पैठी हो सर्दी रग रग में और बर्फ़ पिघलता हो पत्थर
झड़-बाँध महावट पड़ती हो और तिस पर लहरें ले ले कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सीने के वीराँ गोशों में इक टीस सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सब कुछ छिन जाएगा इक दिन अब भी वक़्त है देख सँभल
नर्म रगों में मीठी मीठी टीस जो ये उठती है आज
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कुछ ऐसे हैं कि तीस इक साल होने आए हैं अब जिन की रहलत को
इधर कुछ सानेहे ताज़ा भी हैं हफ़्तों महीनों के
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
ख़ाक में रौंदा हुआ चेहरा मगर इक दिलकशी
आँख में हल्का तबस्सुम, दिल में कोई टीस सी