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नज़्म
ये मर्ग अम्बोह जिस की ता में दबी हुई आग की हरारत
है आख़िरी फ़ैसलों का मौसम कि आईना वार में यहाँ पे
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
वो ज़ीने ही में टकराने की हसरत रह गई दिल में
सुना वन-वे ट्रैफ़िक हो गई ऊपर की मंज़िल में
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मुझ को तुझ से जो है उल्फ़त वो है वन-वे साक़ी
हम भी हैं तेरे ही अल्लाह के बंदे साक़ी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
कैलन्डर के बदलने से कहाँ माज़ी बदलता है
पुराने ज़ख़्म भरते हैं भला आँखों को भरने से
अली एजाज़ तमीमी
नज़्म
शिद्दत-ए-दर्द-ओ-अलम से जब भी घबराता हूँ मैं
तेरे नग़्मों की घनी छाँव में आ जाता हूँ मैं
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
कोई मुख़्लिस मुझे तुझ सा न मिला तेरे बाद
याद आती है बहुत तेरी वफ़ा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
है जो राह-ए-ज़िंदगी में पेच-ओ-ख़म का इक मक़ाम
या इमारत में है जो जाह-ओ-हशम का इक मक़ाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ऐ गुल-ए-रंगीं-क़बा ऐ ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार
तू है ख़ुद अपने जमाल-ए-हुस्न का आईना-दार
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
हक़ीक़ी दुश्मनी को दोस्ती के मक्र पर वर पैरहन पर
ख़्वाह इस में फ़ाएदा ही क्यूँ न हो