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नज़्म
कुछ इंतिज़ार और करो सब्र-ए-नागवार और करो
कुछ अपने सरों को क़लम गरेबाँ को चाक और करो
क़लील झांसवी
नज़्म
कुछ न कहना भी बहुत कहना है
लफ़्ज़ सीने में ही रुक जाएँ तो फिर बात कहाँ होती है
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
नज़्म
तुझ को मालूम नहीं तुझ को भला क्या मालूम
तेरे चेहरे के ये सादा से अछूते से नुक़ूश