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नज़्म
बहुत मसरूर-ओ-शादाँ है उधर जिस पर नज़र डालो
चमक आँखों में सब के और सब गालों पे लाली है
शौकत जमाल
नज़्म
कई सर्दियाँ भी गुज़र गईं मैं तो उस के काम न आ सका
मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
नज़्म
गुनगुना उठा हूँ मुस्कुरा दिया हूँ
मिरे इस आहनी महल के आस्ताँ पे आसमाँ की जन्नतें भी सज्दा-रेज़ हो गईं
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
शबनम का रस पी गईं किरनें दिन का रंग चमक उट्ठा
गूँज है भँवरों की कानों में पर हैं आँखों से ओझल