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नज़्म
इल्म ओ हिकमत रहज़न-ए-सामान-ए-अश्क-ओ-आह है
या'नी इक अल्मास का टुकड़ा दिल-ए-आगाह है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कौन समझेगा जहाँ में मिरे ज़ख़्मों का हिसाब
किस को ख़ुश आएगा इस दहर में रूहों का अज़ाब
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वो पूरे हैं आगाह गुरु
वो कामिल-ए-रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे नाह गुरु
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
किस को मा'लूम थी इस गुलशन-ए-अख़्लाक़ की राह
मैं ने फूलों को किया रंग-ए-वफ़ा से आगाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
राद हूँ बर्क़ हूँ बेचैन हूँ पारा हूँ मैं
ख़ुद-प्रुस्तार, ख़ुद-आगाह ख़ुद-आरा हूँ मैं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जो मेरा हाथ हो सीधा तो वो उल्टा दिखाता है
अगर उल्टा दिखाता हूँ तो फिर सीधा दिखाता है