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नज़्म
ब-हर-हाल तय हुआ कि आलम-ए-इंसानियत को बुज़दिलों से पाक किया जाए
वर्ना निगेटिविटी फैलती रहेगी
निगहत साहिबा
नज़्म
फ़ज़ा-ए-इल्म-ओ-फ़न पर ये मिसाल-ए-अब्र छाई है
मज़ाक़-ए-जुस्तुजू बन कर रग-ए-दिल में समाई है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
ज़मीर-ए-फ़ितरत-ए-इंसानियत को चौंका कर
उरूज-ए-क़िस्मत-ए-आदम दिखाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुनो ऐ तानीसयत के ना'रे लगाने वालो
रसूल-ए-इंसानियत ने मज़लूम 'औरतों को हयात बख़्शी
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
समेटूँ मरकज़-ए-इंसानियत पर ज़ुल्म बरहम को
सिखाऊँ एहतिराम-ए-ज़िंदगी औलाद-ए-आदम को