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नज़्म
तुम्हारी बज़्म ज़ेहन-ओ-फ़िक्र की आराइशें की हैं
हम ऐसे ही असीर-ए-गुल असीर-ए-जाम लोगों ने
सलाम मछली शहरी
नज़्म
ढूँडी है यूँही शौक़ ने आसाइश-ए-मंज़िल
रुख़्सार के ख़म में कभी काकुल की शिकन में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सफ़ा-ए-दिल को क्या आराइश-ए-रंग-ए-तअल्लुक़ से
कफ़-ए-आईना पर बाँधी है ओ नादाँ हिना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल की तस्कीं भी है आसाइश-ए-हस्ती की दलील
ज़िंदगी सिर्फ़ ज़र-ओ-सीम का पैमाना नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ग़रज़ जवानी में अहरमन के तरब का सामान बन गया मैं
गुनह की आलाइशों में लुथड़ा हुआ इक इंसान बन गया मैं
नून मीम राशिद
नज़्म
''शोर-ए-लैला को कि बाज़-आराइश-ए-सौदा कुनद
ख़ाक-ए-मजनूँ-रा ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-सहरा कुनद''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू है दरिया-ए-मुक़द्दस तू कि है इस्याँ से पाक
तेरा दामन है अभी आलाइश-ए-इंसाँ से पाक