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नज़्म
मगर सारी आराइशों में समा कर
सराबों की मौजों के ग़ैबी थपेड़ों ने पल पल निखारा है बोसीदा चेहरे को मेरे
रियाज़ लतीफ़
नज़्म
जिस्म पर आराइशों के मैले धब्बों को सजा कर नाचते हैं
गीत बन कर आसमाँ की वुस'अतों में गूँजते हैं
सय्यद बशारत अली
नज़्म
तुलती है कहीं दीनारों में बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सफ़ा-ए-दिल को क्या आराइश-ए-रंग-ए-तअल्लुक़ से
कफ़-ए-आईना पर बाँधी है ओ नादाँ हिना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़रज़ जवानी में अहरमन के तरब का सामान बन गया मैं
गुनह की आलाइशों में लुथड़ा हुआ इक इंसान बन गया मैं