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नज़्म
ज़ीस्त आशोब-ए-ग़म-ए-मर्ग का तूफ़ाँ ही सही
मिल ही जाता है सफ़ीनों को किनारा आख़िर
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
उन से मिलने की तमन्ना दिल-ए-बेताब न कर
अहल-ए-दिल कुश्ता-ए-उफ़्ताद-ए-ज़माना हों जहाँ
बज़्म अंसारी
नज़्म
तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला
तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाए हाए
ज़े ख़े शीन
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-पदमनी गहवारा-ए-प्रतापी भीम
रश्क-ए-फ़िरदौस-ए-ज़माना देखने आया हूँ मैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
जो ज़ुल्म हम पे हुआ है अब उस का ज़िक्र ही क्या
यहाँ पे हम ही सितम-ख़ुर्दा-ए-ज़माना नहीं
अहमद राही
नज़्म
ये इंसानों से इंसानों की फ़ितरत छीन लेती है
ये आशोब-ए-हलाकत फ़ित्ना-ए-इस्कंदर-ओ-दारा