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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साकिनान-ए-अर्श-ए-आज़म की तमन्नाओं का ख़ूँ
इस की बर्बादी पे आज आमादा है वो कारसाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुस्न-ए-अज़ल की है नुमूद चाक है पर्दा-ए-वजूद
दिल के लिए हज़ार सूद एक निगाह का ज़ियाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अभी इम्काँ के ज़ुल्मत-ख़ाने से उभरी ही थी दुनिया
मज़ाक़-ए-ज़िंदगी पोशीदा था पहना-ए-आलम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये सारे बर्र-ए-आज़म बहर-ए-आज़म अब हमारी दस्तरस में हैं
अजब क़ुदरत अजब तस्कीन का एहसास होता था
इशरत आफ़रीं
नज़्म
ख़तीब-ए-आज़म अरब का नग़्मा अजम की लय में सुना रहा है
सर-ए-चमन चहचहा रहा है सर-ए-विग़ा मुस्कुरा रहा है