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नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
तिलिस्म-ए-बाद-ओ-बाराँ में कोई तूफ़ाँ न होता
मोहब्बत ख़त्म हो जाने का भी इम्काँ न होता
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तिलिस्म-ए-बाद-ओ-बाराँ में कोई तूफ़ाँ न होता
मोहब्बत ख़त्म हो जाने का भी इम्काँ न होता