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नज़्म
सबक़ फिर पढ़ सदाक़त का अदालत का शुजाअ'त का
लिया जाएगा तुझ से काम दुनिया की इमामत का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याँ हर-दम झगड़े उठते हैं हर-आन अदालत बस्ती है
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कहीं ता'मीर करती है इबादत-गाह फ़ित्नों से
कहीं ख़ुद ही इबादत-गाह को मिस्मार करती है
रहबर जौनपूरी
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
दस्तूर-ए-अदालत के लिए उस का क़लम था
फ़रमान-ए-रेआ'या के लिए उस की ज़बाँ थी