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नज़्म
गोशा-ए-दिल में छुपाए इक जहान-ए-इज़तिराब
शब सुकूत-अफ़्ज़ा हवा आसूदा दरिया नर्म सैर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ब-सद इसरार मेहमानों को सिरहाने बिठाती थीं
अगर गर्मी ज़ियादा हो तो रूह-अफ़्ज़ा पिलाती थीं
असना बद्र
नज़्म
तू कहाँ है ऐ कलीम-ए-ज़र्रा-ए-सीना-ए-इल्म!
थी तिरी मौज-ए-नफ़स बाद-ए-नशात-अफ़ज़ा-ए-इल्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूह-अफ़ज़ा हैं जुनून-ए-इश्क़ के नग़्मे मगर
अब मैं इन गाए हुए गीतों को गा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क़व्वालियों की रूह-अफ़्ज़ा लहर की वो इत्र-सामानी अभी भी है
वही ढलती हुई शब और वही बाद-ए-सबा के दोष पर
इशरत आफ़रीं
नज़्म
मुर्ग़ान-ए-बाग़ बन कर उड़ते फिरें हवा में
नग़्मे हों रूह-अफ़्ज़ा और दिल-रुबा सदाएँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मर्हबा ऐ नौ-गिरफ़्तारान-ए-बेदाद-ए-फ़रंग
जिन की ज़ंजीरें ख़रोश-अफ़ज़ा-ए-ज़िंदाँ हो गईं
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
नशात-ए-रूह-अफ़ज़ा की फ़ज़ाओं में वो रंगीनी
वो फ़व्वारों की नग़्मा-साज़ियों में कैफ़-ए-ख़ुद-बीनी
मयकश अकबराबादी
नज़्म
या फिर पी लीजिए ठंडा मीठा रूह-अफ़्ज़ा
सीने आसमानी मौसीक़ी बाख और मोत्ज़ार्ट की