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नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जब माह अघन का ढलता हो तब देख बहारें जाड़े की
और हँस हँस पूस सँभलता हो तब देख बहारें जाड़े की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कोई ना-माक़ूल आ कर गालियाँ भी दे अगर
उस से कहिए भाग जा हट तेरे मुँह में घी शकर