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नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे दम से ग़ज़ब हंगामा रहता था मोहल्लों में
मैं हश्र-आग़ाज़ लड़का था मैं हश्र-अंजाम लड़का था
जौन एलिया
नज़्म
आइंदा की फ़र्ज़ी इशरत के वादों से न कर बेताब हमें
कहता है ज़माना जिस को ख़ुशी आती है नज़र कमयाब हमें
अख़्तर शीरानी
नज़्म
यक़ीं अफ़राद का सरमाया-ए-तामीर-ए-मिल्लत है
यही क़ुव्वत है जो सूरत-गर-ए-तक़दीर-ए-मिल्लत है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ुल्म की बात ही क्या ज़ुल्म की औक़ात ही क्या
ज़ुल्म बस ज़ुल्म है आग़ाज़ से अंजाम तलक
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उठ कि अब बज़्म-ए-जहाँ का और ही अंदाज़ है
मश्रिक-ओ-मग़रिब में तेरे दौर का आग़ाज़ है