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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ून-ए-दिल से आप ने सींचा हमारा ये चमन
जिस में खुलते आज भी हैं ग़ुंचा-हा-ए-इल्म-ओ-फ़न
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
बराए अहल-ए-'इल्म-ओ-फ़न जो क़त्ल-ए-फ़िक्र होता है
कि जिस को सुन के अरफ़ा' शा'इरी से ना-बलद बच्चे