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नज़्म
मुझ को कल रात उस की हथेली में मेहंदी लगानी थी
मेहंदी से बेलें बनानी थीं बूटे सजाने थे
अमित गोस्वामी
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की