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नज़्म
वो सुलगते दिल पर मुस्कुराते गुज़र जाती है
दिल का मोआमला अंधेरे में मश्कूक हो जाता है
अहमद सुहेल
नज़्म
मैं हर्फ़-ओ-सौत के अंधे लुटेरों से नहीं डरता
ख़ुदा-ए-बरतर-ओ-आला का दिल में प्यार ज़िंदा है
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
दिलों में दर्द दिमाग़ों में कश्मकश का धुआँ
जबीं पे ख़ाक निगाहों में ग़म की तारीकी
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
कोई पत्ता भी नहीं हिलता, न पर्दों में है जुम्बिश
फिर भी कानों में बहुत तेज़ हवाओं की सदा है
गुलज़ार
नज़्म
ज़बाँ को तर्जुमान-ए-ग़म बनाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
मैं बर्ग-ए-गुल से अंगारे उठाऊँ किस तरह 'कैफ़ी'
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर