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नज़्म
कुछ ख़्वाब हैं परवर्दा-ए-अनवार मगर उन की सहर गुम
जिस आग से उठता है मोहब्बत का ख़मीर उस के शरर गुम
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कुछ ख़्वाब हैं परवर्दा-ए-अनवार मगर उन की सहर गुम
जिस आग से उठता है मोहब्बत का ख़मीर उस के शरर गुम