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नज़्म
अभी कुछ ऐसे ग़य्यूर-ओ-सादिक़ ब-क़ैद-ए-जाँ हैं
कि हर्फ़-ए-इंकार जिन की क़िस्मत नहीं बना है
परवीन शाकिर
नज़्म
किसी दिन चाँद पर हम लोग भी रॉकेट से जाएँगे
ये माना चाँद अभी इक रेत का मैदान है लेकिन
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
हम चाँद नगर पर जाते ही खोलेंगे एक नया मकतब
ता'लीम न होगी जिस में कभी सब आज़ादी से घूमेंगे