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नज़्म
तुम्हारी अर्जुमंद अम्मी को मैं भूला बहुत दिन में
मैं उन की रंग की तस्कीन से निमटा बहुत दिन में
जौन एलिया
नज़्म
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सीने के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बताई जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क़स्र-ए-गीती में उमँड आया है तूफ़ान-ए-हयात
मौत लर्ज़ां है पस-ए-पर्दा-ए-दर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उमँड आते थे जब अश्क-ए-मोहब्बत उस की पलकों तक
टपकती थी दर-ओ-दीवार से शोख़ी तबस्सुम की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
झड़ कर रही हैं झड़ियाँ नाले उमँड रहे हैं
बरसे है मुँह झड़ा झड़ बादल घुमंड रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये काली दीवार जो है नामों का क़ब्रिस्तान
वॉशिंगटन के शहर में दफ़्न हैं किस किस के अरमान
अहमद फ़राज़
नज़्म
ये कहते हैं कि अब अरमाँ निकालो अपने बरसों के
तुम्हारे सामने फैला हुआ मैदान सारा है