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नज़्म
अब यही कोशिश है दिल से ऐ मिरी अर्ज़-ए-वतन
तेरी पेशानी पे अब कोई शिकन आने न पाए
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
बढ़ेगा जानिब-ए-मंज़िल ये कारवाँ इक दिन
फ़ज़ा-ए-अर्ज़-ओ-समा होगी हम-इनाँ इक दिन
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ
हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ