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नज़्म
मगर क्या कीजिए जब फ़ैसला ये है मशिय्यत का
कि मैं फ़ितरत की आँखों से गिरूँ अश्क-ए-रवाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
क़ुमरियाँ मीठे सुरों के साज़ ले कर आ गईं
बुलबुलें मिल-जुल के आज़ादी के गुन गाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
अश्क-ए-ख़ूनीं में नज़र आई तबस्सुम की झलक
नग़्मा-ए-बुलबुल बनी ख़ामोश फूलों की महक
मयकश अकबराबादी
नज़्म
गुल-ओ-बुलबुल से हट कर भी कभी देखा है फ़ितरत को
गुल-ओ-बुलबुल बजा लेकिन चमन में ख़ार भी तो है
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
निकली सदा-ए-बुलबुल कोयल की कूक गूँजी
चिड़ियों की चहचहाहट लुत्फ़-ए-हयात लाई
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
तू रही साज़-ए-मोहब्बत पर हमेशा नग़्मा-ख़्वाँ
है अमर तू आज भी ऐ बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
शहपर-ए-बुलबुल पे खींची जाए तस्वीर-ए-शिग़ाल!
मोतियों पर सब्त हो तूफ़ान की मोहर-ए-जलाल