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नज़्म
आँख पर होता है जब ये सिर्र-ए-मजबूरी अयाँ
ख़ुश्क हो जाता है दिल में अश्क का सैल-ए-रवाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये जब्र-ओ-क़हर नहीं है ये 'इशक़-ओ-मस्ती है
कि जब्र-ओ-क़हर से मुमकिन नहीं जहाँबानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस में ही लोग इश्क़-ओ-मोहब्बत के मारे हैं
इस में ही शोख़ हुस्न के चाँद और सितारे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आँखों आँखों में दिया पैग़ाम-ए-इश्क़-ओ-बे-ख़ुदी
ज़िंदगानी इक शराब-ए-तुंद बन कर रह गई
हसरत जयपुरी
नज़्म
गर तमन्ना है कि हो सारा ज़माना अपना
जज़्बा-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत की नज़र पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
पर तुझे इश्क़-ओ-मोहब्बत से कहाँ फ़ुर्सत है
मय-ए-गुल-रंग की ला'नत से कहाँ फ़ुर्सत है
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
नहीं है शे'र में इश्क़-ओ-वफ़ा सदाक़त कुछ
कोई हो 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' कोई 'बेदिल' हो
जमील अहमद जायसी
नज़्म
'इशक़-ओ-मस्ती की ब-आहंग-ए-‘ख़याम'-ओ-'हाफ़िज़'
साज़-ए-उर्दू से न निकलेगी सदा तेरे बा'द
बिस्मिल सईदी
नज़्म
जहाँ इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न-ओ-वफ़ा की राजधानी थी
मोहब्बत मसनद-आरा थी मोहब्बत पुर-जवानी थी