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नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक हस्ती में तमाम औसाफ़ क्यूँकर पाएँगे
अब कहाँ से बुल-कलाम-आज़ाद जैसा लाएँगे
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
जहान-ए-शौक़ का अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम भी हैं
करिश्मा है ख़ुदा का आप के औसाफ़ के क़ाइल
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
क़ौमी यक-जेहती का हामी तो मुनाफ़ी-ए-निफ़ाक़
क्या बयाँ हो तिरे औसाफ़-ए-हमीदा का फ़िराक़
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
हम मु’अर्रा हो के इन औसाफ़ से पस्ती में हैं
दौलत-ए-‘इल्म-ओ-‘अमल खो कर तही-दस्ती में हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ला कहीं से ढूँढ़ कर अस्लाफ़ का क़ल्ब-ओ-जिगर
ऐ कि न-शिनासी ख़फ़ी रा अज़ जली हुशियार बाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'गाँधी' हो कि 'ग़ालिब' हो इंसाफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैं दोनों के पुजारी हैं