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नज़्म
अपने गुलहा-ए-अक़ीदत पेश करती हूँ तुझे
मुख़्तसर ये है मोहब्बत पेश करती हूँ तुझे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जुनून-ए-शौक़ के दम से है इज़्ज़-ओ-शान-ए-हयात
यही है रूह-ए-मोहब्बत यही है जान-ए-हयात
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दोस्तो आगे बढ़ा जम्हूरियत का कारवाँ
आज ज़िंदा हो गई है 'अज़्मत-ए-हिन्दोस्ताँ
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ज़िंदगी की राहों में
चराग़ फ़िक्र-ओ-नज़र के जलाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
ऐ ख़ुदा शम-ए-मोहब्बत को फ़रोज़ाँ कर दे
दाग़-ए-दिल को मिरे सद-रश्क-ए-गुलिस्ताँ कर दे
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
है दसहरा यादगार-ए۔अज़्मत۔ए۔हिन्दोस्ताँ
हिंदुओं की इक क़दीमी फ़त्ह-ओ-नुसरत का निशाँ
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
नज़्म
शौकत-ए-किसरा ओ शान-ए-जम तो दरबारों में है
जिंस-ए-नायाब-ए-वफ़ा भी तेरे बाज़ारों में है