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नज़्म
या कभी फिर दाद देता हूँ ब-आवाज़-ए-दुहल
साथ वालों की तरफ़ फिर आँख मिचकाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
नय कोई राह-नुमा नय कहीं आवाज़-ए-दलील
'इश्क़ बा-ईं-हमा वारफ़्ता-ओ-सरगर्म-ए-रहील
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तेरे साहिल से टपकती अब भी है शान-ए-बुलंद
आसमाँ-फ़र्सा हैं अब भी तेरे ऐवान-ए-बुलंद
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
बज़्म-ए-ख़ामोश में छिड़ने को है फिर साज़-ए-हयात
मुंतज़िर बैठे हैं सब गोश-बर-आवाज़-ए-हयात