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नज़्म
मिरे जज़्बात की देवी मिरे अशआर की मलका
वो मलका जो ब-रंग-ए-अज़्मत-ए-शाहाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
कभी साथ अपने उस के आस्ताँ तक मुझ को तू ले चल
छुपा कर अपने दामन में ब-रंग-ए-मौज-ए-बू ले चल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब कहाँ वो कुंज-ए-दिल-कश अब कहाँ राधा का ऐश
है ब-रंग-ए-ख़ंदा-ए-गुल बे-बक़ा दुनिया का ऐश
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
रुकी रुकी दिल-ए-फ़ितरत की धड़कनें यक-लख़्त
ये रंग-ए-शाम कि गर्दिश ही आसमाँ में नहीं