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नज़्म
ब-ज़िद हैं फिर भी कज-नज़र हयात शाद-काम है
नुमाइश-ओ-नुमूद-ओ-नंग-ओ-नाम पर निगाह है!
मोहसिन भोपाली
नज़्म
बयाज़-ए-दिल को जो खोलें तो जुस्तुजू होगी
हर एक सफ़्हा-ए-हस्ती की गुफ़्तुगू होगी
बेगम सुल्ताना ज़ाकिर अदा
नज़्म
मैं शाइ'र हूँ मुझे अहल-ए-हुनर फ़नकार कहते हैं
मुझे रम्ज़-आश्ना-ए-निकहत-ए-गुलज़ार कहते हैं
असद जाफ़री
नज़्म
मिरी गुड़िया तिरी रुख़्सत का दिन भी आ गया आख़िर
सिमट आया है आँखों में तेरा बीता हुआ बचपन
सुहैल सानी
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस में हर दम
गर्दिश-ए-ख़ूँ से वो कोहराम बपा रहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सखी फिर आ गई रुत झूलने की गुनगुनाने की
सियह आँखों की तह में बिजलियों के डूब जाने की